गौशाला परिचय

गौशाला की स्थापना

इस युग के सर्वश्रेष्ठ आचार्य, जीव दया के मसीहा, गुरुवर श्री 108 विद्यासागर जी महामुनि राज के आशीर्वाद से एवं इस युग की श्रेष्ठ आर्यिका विज्ञान मति माताजी की वात्सल्य मयी प्रेरणा तथा आरोन नगर के गौरव,कर्मठ एवं लगन शील बाल ब्रह्मचारी हेमंत भैया जी (वर्तमान में मुनि श्री 108 निस्सीम सागर जी महाराज)के मार्गदर्शन में सर्वप्रथम एक छोटी सी गौशाला वर्धमान कंपलेक्स में खोली गई जहां असहाय एवं अस्वस्थ गायों की सेवा करना प्रारंभ किया गया।
जीव दया के क्षेत्र में यह छोटी सी शुरुआत आज एक विशाल रूप ले चुकी है जिसमें आरोन नगर की युवा पीढ़ी अपना जमकर सहयोग देती है।
गौ सेवा के इस महान कार्य को सफलतापूर्वक करने में हमें समय-समय पर आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के आशीर्वाद से संत समागम मिलता रहता है ।
सर्वप्रथम पूज्य मुनि श्री 108 नियम सागर जी महाराज, पश्चात पूज्य मुनि श्री 108 प्रशांत सागर जी महाराज(ससंघ), मुनि श्री 108 विशद सागर जी मुनिराज का विशेष सहयोग एवं मार्गदर्शन पश्चात मुनि श्री 108 अभय सागर जी महाराज ससंघ का मार्गदर्शन हमें सदैव ही मिलता रहता है और समय-समय पर आर्यिका संघों का मार्गदर्शन भी हमें मिलता रहा है।

गौशाला का उद्देश्य

गाय अपनी स्वस्थ अवस्था में हमें अमृत समान दूध देती है, खेती के लिए बोल देती है, ईंधन के लिए गोबर देती है, और तो और जिसका मूत्र भी औषधियों में काम आता है ऐसी गौ माता के वृद्ध होने पर बुद्धिहीन मानव उसे जंगलों में छोड़ देते हैं जहां से कुछ लोग मानवता की बलि चढ़ा कर उन्हें पकड़कर बूचड़खानों में कत्ल होने के लिए बेंच देते हैं, वही एक ओर कई गायें सड़क पर चलते हुए वाहन आदि से टकराकर घायल हो जाती हैं और सही समय पर चिकित्सा न होने के कारण अपने प्राण त्याग देती हैं।
इन्हीं सब हालातों को देखते हुए दिगंबर जैन समाज आरोन वासियों ने भगवान महावीर स्वामी के उपदेश
“जियो और जीने दो”
का पालन करते हुए जीव दया के भाव को लेकर नगर में गौशाला खोलने की योजना बनाई ,आरोन नगर में गौशाला खोलने का मुख्य उद्देश्य इन निरीह, असहाय और बीमार गौवंश की सेवा व पालन करना है।

प्रस्तावना

जिनकी सेवा कर के, नर भव से तर जाता।
सब देवों का अंश, समेटे है "गौ माता" ।।

आप जानते हैं वैसे तो हमारी तीन मां हैं-
1. धरती मां
2. जन्म दात्री मां
3. गुरु मां
परंतु हम गाय को भी गौ माता कहते हैं पता है क्यों? जब किसी बच्चे का जन्म होता है तो उसे मां का दूध पिलाया जाता है,परंतु यदि जन्म के समय माता की आकस्मिक मृत्यु हो जाती है तब उसे गाय का दूध पिलाया जाता है तो हम गाय को माता मानने से कैसे इंकार कर सकते हैं अर्थात गाय हमारी माता है, और गौ-रक्षा हमारा धर्म है।

माता समझो गाय को, होवेगा कल्याण।
माता के आशीष से, सुख पावे संतान॥
दूध-दही, घी गाय का, होता अमृत पान।
गोबर व गौ- मूत्र है, औषध का सामान।।
फसलें भी भरपूर हों, ना हो धन बर्बाद।
पेस्टीसाइड छोड़ के, डालो गोबर खाद॥
तन-मन को शीतल करे, कंचन कर दे देह।
दही-छाछ पी गाय की, कटे रोग मधुमेह॥
गौ-माता अब देखिए, खाती पालीथीन।
इसलिए तो हो गई, हालत अपनी दीन।।

गौशाला - वीडियो

हमारी गौशाला के बारे में कुछ तथ्य?

350
कुल गायें
80
कुल स्वयंसेवक
13
वर्ष
2.5
एकड़ क्षेत्र